नवरात्रि भारत का सबसे बड़ा शक्ति पर्व है। यह केवल डांडिया या गरबा का त्योहार नहीं है, बल्कि इसका आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है। नवरात्रि हमें माँ दुर्गा की शक्ति, भक्ति और विजय का स्मरण कराती है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे, नवरात्रि क्यों मनाई जाती है, इसके प्रकार, नौ देवियों के स्वरूप, और पूजा विधि से जुड़ी खास बातें।
नवरात्रि क्यों मनाई जाती है?
नवरात्रि महिषासुर राक्षस के वध की याद में मनाई जाती है। जब महिषासुर ने पूरे ब्रह्मांड में आतंक मचा दिया था, तब देवी दुर्गा ने नौ अलग-अलग रूप धारण कर उसका संहार किया। यही कारण है कि नवरात्रि के नौ दिन, माँ के नौ स्वरूपों को समर्पित होते हैं और दसवें दिन विजयदशमी मनाई जाती है।
नवरात्रि के प्रकार
साल में चार नवरात्रि आती हैं:
- चैत्र नवरात्रि
- शारदीय नवरात्रि
- दो गुप्त नवरात्रि (इनमें तांत्रिक साधना और तंत्र विद्या की साधना की जाती है, इसलिए ये आम लोगों को ज्ञात नहीं होते)
आम लोग चैत्र और शारदीय नवरात्रि ही मनाते हैं।
नौ देवियों के स्वरूप और उनका महत्व
नवरात्रि के नौ दिन माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। हर रूप का अपना विशेष महत्व है और जीवन की किसी समस्या का समाधान भी देता है।
- माँ शैलपुत्री – पर्वतराज हिमालय की पुत्री। यह माँ का प्रथम रूप है और स्थिरता, शक्ति और धैर्य का प्रतीक है।
- माँ ब्रह्मचारिणी – तपस्या और संयम का रूप। उन्होंने कठोर साधना करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया। इस रूप की पूजा से जीवन में धैर्य और इच्छाशक्ति बढ़ती है।
- माँ चंद्रघंटा – विवाह के बाद का रूप। इनके मस्तक पर अर्धचंद्र है। यह रूप सौंदर्य, शांति और वीरता का प्रतीक है। इनकी पूजा से भय और नकारात्मकता दूर होती है।
- माँ कुष्मांडा – इन्हें सृष्टि की रचयिता माना जाता है। सूर्य लोक में निवास करके इन्होंने संसार को जीवन दिया। इनकी पूजा से स्वास्थ्य और ऊर्जा प्राप्त होती है।
- माँ स्कंदमाता – भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता। यह मातृत्व और संतान सुख का प्रतीक हैं। इनकी पूजा से संतान प्राप्ति और परिवारिक सुख मिलता है।
- माँ कात्यायनी – महिषासुर का वध करने वाली। इनकी पूजा से शत्रु नाश होता है और विवाह संबंधी बाधाएँ दूर होती हैं।
- माँ कालरात्रि – सबसे उग्र रूप, जिन्हें काली भी कहते हैं। राक्षसों के संहार और तंत्र साधना की अधिष्ठात्री हैं। इनकी पूजा से भय, जादू-टोना और बुरी शक्तियाँ दूर होती हैं।
- माँ महागौरी – सुंदरता, शांति और पवित्रता का रूप। माँ काली के बाद जब इन्होंने तपस्या की, तो इन्हें महागौरी नाम मिला। इनकी पूजा से पवित्रता और सौंदर्य मिलता है।
- माँ सिद्धिदात्री – नौवाँ रूप, जो सभी सिद्धियाँ प्रदान करती हैं। यह पूर्णता, सफलता और विजय का प्रतीक हैं।
👉 हर देवी का एक विशेष महत्व है। उदाहरण के लिए, माँ स्कंदमाता संतान सुख के लिए, माँ कालरात्रि सुरक्षा के लिए और माँ कुष्मांडा स्वास्थ्य व ऊर्जा के लिए पूजी जाती हैं।
पूजा के नियम और परंपराएँ
1. तस्वीर, मूर्ति या पन्ना – क्या रखें?
- तस्वीर रखना सबसे सरल और सुविधाजनक है। इसमें कोई विशेष नियम-कानून नहीं होते।
- मूर्ति रखने पर नियम सख्त होते हैं और नवरात्रि के बाद विसर्जन करना पड़ता है।
- पन्ना (पाटा) – इसमें परिवार की कुलदेवी का प्रतीक बनाया जाता है और उनकी पूजा होती है।
2. अष्टमी vs नवमी पूजा
- कुछ परिवारों में अष्टमी को हवन और कन्या पूजन होता है।
- कुछ में नवमी को।
यह परिवार की परंपरा पर निर्भर करता है कि किस दिन पूजा की जाए।
3. कन्या पूजन विधि
- नौ कन्याओं को निमंत्रित करना चाहिए।
- उन्हें घर बुलाकर सबसे पहले चुनरी ओढ़ाएँ, पैर धोएँ और तिलक करें।
- स्वच्छ स्थान पर बैठाकर माँ और बहनें खुद भोजन बनाकर खिलाएँ।
- अंत में फल, श्रृंगार सामग्री या अन्य उपहार दें।
अष्टमी और नवमी पूजन का महत्व
नवरात्रि में कुछ लोग अष्टमी पूजन करते हैं और कुछ लोग नवमी पूजन। इसका अंतर परिवार की परंपराओं पर निर्भर करता है।
- कई घरों में रामायण पाठ या अन्य अनुष्ठान अष्टमी को ही पूर्ण हो जाते हैं, इसलिए वे अष्टमी को मुख्य पूजा मानते हैं।
- वहीं कुछ परिवारों में अनुष्ठान नवमी तक चलते हैं और नवमी को हवन एवं मुख्य पूजन किया जाता है।
इसमें सही या गलत कुछ भी नहीं है। यह पूरी तरह आपके परिवार की परंपरा और आपके पूर्वजों की पूजा पद्धति पर निर्भर करता है। यदि आपके परिवार में अष्टमी पूजी जाती है तो वही करें, और यदि नवमी की परंपरा है तो नवमी को पूजन करें। दोनों ही समान रूप से शुभ और मंगलकारी हैं।
कन्या पूजन का सही तरीका
नवरात्रि का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है कन्या पूजन। छोटी बच्चियों को माता का स्वरूप मानकर उन्हें आमंत्रित किया जाता है।
सही विधि इस प्रकार है:
- कन्याओं को एक दिन पहले ही निमंत्रण दें।
- पूजा वाले दिन उन्हें चुनरी ओढ़ाकर घर में स्वागत करें।
- दरवाज़े पर उनके पैर धोएं, माथे पर तिलक लगाएं।
- उन्हें स्वच्छ और पवित्र स्थान पर बैठाएं।
- घर की माताएं व बहनें श्रद्धा से भोजन बनाएं। पहले माता को भोग लगाएं, फिर कन्याओं को भोजन कराएं।
- भोजन के बाद श्रद्धानुसार उपहार दें – जैसे फल, श्रृंगार का सामान, कपड़े या कोई छोटा गिफ्ट।
परंपरा के अनुसार नौ कन्याओं को पूजना सबसे शुभ माना जाता है, लेकिन यदि संभव न हो तो कम संख्या में भी कर सकते हैं, बशर्ते पूजा पूरी श्रद्धा से हो।
विजयदशमी का महत्व
दसवां दिन यानी विजयदशमी अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है।
- इस दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर को हराया।
- इसी दिन भगवान राम ने रावण का वध किया।
यह दिन हमें याद दिलाता है कि नकारात्मकता पर विजय पाना ही जीवन का असली उद्देश्य है।
निष्कर्ष
नवरात्रि केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि यह आत्मशक्ति, भक्ति और सकारात्मकता का उत्सव है। नौ देवियों की पूजा से जीवन की हर समस्या का समाधान मिलता है।
माँ दुर्गा हमें सिखाती हैं कि श्रद्धा और समर्पण से हर कठिनाई पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
Note: ये सभी विचार अर्पिता त्रिवेदी जी के हैं, जो हमारे पॉडकास्ट पर विशेष अतिथि के रूप में आई थीं।

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